मस्टर्ड फसलों की उगाने की सही विधि

मस्टर्ड, जिसे हिंदी में सरसों कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण खाद्य और औद्योगिक फसल है। भारत में यह प्रमुख रूप से रबी (सर्दी) सीजन में उगाई जाती है और इसके बीजों से तेल निकाला जाता है जो खाने के अलावा औद्योगिक उपयोगों में भी आता है। इसके अलावा, मस्टर्ड की पत्तियाँ भी खाने के लिए उपयोग होती हैं। मस्टर्ड की खेती में किसानों को अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए सही विधियों का पालन करना जरूरी है। इस ब्लॉग में हम मस्टर्ड फसल उगाने की सही विधि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

1. मस्टर्ड के लिए उपयुक्त जलवायु

मस्टर्ड की फसल को ठंडी जलवायु में उगाया जाता है। यह फसल 10°C से 25°C के बीच के तापमान में अच्छे से बढ़ती है। अत्यधिक गर्मी (35°C से ऊपर) और अधिक नमी मस्टर्ड के लिए हानिकारक हो सकती है। मस्टर्ड की अच्छी पैदावार के लिए हल्की ठंडी हवा और पर्याप्त धूप की आवश्यकता होती है।

2. मस्टर्ड के लिए मिट्टी का चुनाव

मस्टर्ड की फसल के लिए रेतीली दोमट या बलुआ मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का pH 6 से 7 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि अत्यधिक पानी के कारण जड़ें सड़ सकती हैं। बेहतर पैदावार के लिए मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है।

3. बीज का चयन

मस्टर्ड के अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए सही किस्म के बीज का चयन बहुत जरूरी है। बाजार में कई किस्में उपलब्ध हैं, जैसे कि Pusa Mustard 25, Rohini, Varuna, और Pusa Jai Kisan। इन बीजों को उगाने की परिस्थिति और जलवायु के हिसाब से चुना जा सकता है। बीज की गुणवत्ता भी बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए बीज हमेशा प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें।

4. बुआई का समय

मस्टर्ड की बुआई का समय सर्दियों के मौसम के अंत में और वसंत के शुरू होने के करीब होता है। आमतौर पर, यह अक्टूबर के अंत से लेकर नवम्बर के मध्य तक किया जाता है। बुआई का सही समय फसल की गुणवत्ता और उपज पर असर डालता है। बुआई से पहले भूमि की तैयारी पूरी तरह से करना जरूरी होता है।

5. मस्टर्ड की बुआई की विधि

मस्टर्ड की बुआई के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाई जाती हैं:

5.1 पंक्ति विधि (Row Method)

इस विधि में 30-40 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियाँ बनाई जाती हैं और बीजों को इन पंक्तियों में बोया जाता है। प्रत्येक पंक्ति में बीजों के बीच 10-15 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है। यह विधि मस्टर्ड के लिए सबसे सामान्य और प्रभावी मानी जाती है।

5.2 ड्रिल विधि (Drill Method)

इस विधि में बीजों को मशीन से बोने का काम किया जाता है। ड्रिल विधि में भी पंक्तियाँ बनाई जाती हैं, लेकिन यह विधि बड़े खेतों में अधिक उपयुक्त होती है। यह विधि बीजों की बराबर दूरी सुनिश्चित करती है और फसल की वृद्धि में मदद करती है।

6. सिंचाई

मस्टर्ड की फसल को शुरुआती अवस्था में हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। हालांकि, यह फसल पानी में सड़ने वाली नहीं है, इसलिए जल निकासी की व्यवस्था होना जरूरी है। बुआई के बाद लगभग 10-15 दिन में हल्की सिंचाई करनी चाहिए। फिर, जब पौधे बढ़ने लगते हैं, तो सिंचाई की आवश्यकता मौसम और मिट्टी के प्रकार के आधार पर होती है। आमतौर पर, मस्टर्ड को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन सूखा या अत्यधिक पानी दोनों ही फसल के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

7. उर्वरकों का उपयोग

मस्टर्ड की फसल के लिए उर्वरकों का सही उपयोग फसल की वृद्धि में मदद करता है। मिट्टी की जांच के आधार पर, फास्फोरस, पोटाश और नाइट्रोजन जैसे उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। सामान्यत: 20-25 किलो नाइट्रोजन, 40-50 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश प्रति एकड़ उपयोग किया जाता है। बुआई से पहले अच्छी तरह से उर्वरकों को मिट्टी में मिला देना चाहिए।

8. निराई-गुड़ाई (Weeding)

मस्टर्ड की फसल में खरपतवारों का प्रभाव कम करने के लिए निराई-गुड़ाई जरूरी है। खरपतवारों की वजह से पौधों को पोषण नहीं मिलता और फसल की वृद्धि रुक सकती है। बुआई के 20-25 दिन बाद पहली निराई की जानी चाहिए और फिर 45-50 दिन बाद दूसरी निराई की जा सकती है। यह फसल की स्वस्थ वृद्धि के लिए आवश्यक है।

9. रोग और कीट नियंत्रण

मस्टर्ड की फसल में कुछ सामान्य कीट और रोग हो सकते हैं, जैसे कि ब्लैक रोट, व्हाइट फ्लाई, एन्थ्रेक्नोज, और फ्यूसैरियम। इनकी रोकथाम के लिए समय-समय पर कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। कापर सल्फेट, स्ट्रेप्टोमाइसिन और मैन्कोजेब जैसे रसायनों का उपयोग इन रोगों के नियंत्रण के लिए किया जाता है। कीटों से बचाव के लिए जैविक कीटनाशकों का भी उपयोग किया जा सकता है।

10. फसल की कटाई

मस्टर्ड की फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब उसके फूल मुरझा जाएं और बीज पकने लगें। इसके बाद, लगभग 20-25 दिन के भीतर बीज पूरी तरह से पक जाते हैं। कटाई के समय बीजों का रंग हल्का भूरा या पीला होना चाहिए। बीजों को अधिक पकने से पहले काट लेना चाहिए, क्योंकि अधिक पकने पर बीज टूट सकते हैं।

11. मस्टर्ड का प्रसंस्करण और संग्रहण

कटाई के बाद बीजों को सुखाना जरूरी होता है। इसके बाद, इन बीजों को साफ कर के सही तापमान में संग्रहित करना चाहिए ताकि उनकी गुणवत्ता बनी रहे। मस्टर्ड के बीजों को ठंडी और सूखी जगह पर रखना चाहिए।

निष्कर्ष

मस्टर्ड की खेती एक लाभकारी कृषि कार्य हो सकता है यदि इसे सही तरीके से किया जाए। सही बीज का चयन, उचित बुआई समय, मिट्टी की तैयारी, सिंचाई और उर्वरकों का सही उपयोग मस्टर्ड की अच्छी पैदावार के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, रोग और कीटों से बचाव, निराई-गुड़ाई और समय पर कटाई से भी अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। मस्टर्ड की सही विधि से खेती करके किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं और यह उनके लिए एक लाभकारी व्यवसाय बन सकता है।

Growing mustard crops through organic natural farming is a sustainable and environmentally friendly agricultural practice that offers numerous benefits. By avoiding synthetic pesticides and fertilizers, organic natural farming promotes soil health, biodiversity, and overall ecosystem balance.

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